लोकसभा चुनाव हर नागरिक के लिए सबसे बड़ा दमखम वाला राजनीतिक इवेंट होता है। क्या आप इस बार किन मुद्दों पर ध्यान दें, किस सीट पर मुकाबला कड़ाई से चल रहा है, और कौन से राज्यों में रोनक बदली जा सकती है — इन्हीं सवालों के जवाब हम रोज़ अपडेट करते हैं।
यहां आपको मिलेंगे सीधा-सीधा रिपोर्ट, जीत-हार के कारण, गठबंधन की चाल और स्थानीय मुद्दों की साफ जानकारी। हमारी कवरेज का मकसद है भ्रम हटाना और आपको वही खबर पहुंचाना जो मतदान के निर्णय में काम आए।
सबसे पहले — सीट-बाय-सीट अपडेट और काउंटिंग लाइव। इसके अलावा उम्मीदवारों की बायो, उनके पिछले रिकॉर्ड, और लोकल मुद्दों का असर। हमने आरटीआई, अफवाह-जांच और फैक्ट-चेक पर भी खास ध्यान दिया है ताकि झूठी ख़बरें आपके आगे न पहुँचें।
आपको मिलेंगे वोटर-आधारिक जानकारी: मतदान केंद्र कैसे ढूँढें, ईवीएम-वीवीपैट प्रक्रियाएं, और वोट डालते समय क्या-क्या दस्तावेज साथ रखें। ये छोटी लेकिन जरूरी बातें अक्सर अनदेखी हो जाती हैं, इसलिए हम उन्हें साफ तरीके से बताने की कोशिश करते हैं।
आर्थिक मुद्दे (रोज़गार, महँगाई), सुरक्षा, किसान नीति और स्थानीय विकास—ये सामान्य रूप से चुनाव तय करते हैं। लेकिन ध्यान रखें: हर राज्य में मुद्दे अलग होते हैं। उत्तर प्रदेश व बिहार में जातीय समीकरण और स्थानीय विकास पर नजर रहती है, जबकि दक्षिण में स्थानीय नेतृत्व और राज्य सरकार की नीतियाँ अहम बनती हैं।
चुनावी रणनीति देखना हो तो तीन चीज़ें नोट करें: गठबंधन-पैक, उम्मीदवार की लोक-छवि और चुनाव प्रचार का पैमाना। बड़े पैमाने पर विज्ञापन और रैलियाँ असर दिखाती हैं, पर मैदान में जीत-हार अक्सर वही तय करता है जो घर-घर की समस्याओं को सुलझाने का भरोसा देता है।
आपको किस तरह की पड़ताल मिलेगी? हमने पिछले चुनावों के आंकड़े, मतदान प्रतिशत, और सीट-वार ट्रेंड्स भी संकलित किए हैं। इससे आप समझ पाएंगे कि किस क्षेत्र में swing किस तरह काम करता है और किन सीटों पर नज़दीकी मुकाबला रहने की संभावना है।
अगर आपको लाइव नतीजे चाहिए तो हमारी काउंट-अपडेट्स और एनालिस्ट कमेंट्स पढ़ें। हम खुले आँकड़ों और सरकारी स्रोतों पर भरोसा करते हैं—कभी अफवाह नहीं, हमेशा सबूत के साथ समाचार।
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आरएसएस के मुखपत्र 'ऑर्गनाइज़र' ने महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों में भाजपा की खराब प्रदर्शन के लिए अजित पवार-नेतृत्व वाली एनसीपी के साथ उसके गठबंधन को दोषी ठहराया है। इस लेख में बताया गया है कि एनसीपी से गठजोड़ करने से भाजपा की साख को नुकसान हुआ और पुराने कार्यकर्ताओं की भावना को ठेस पहुंची। लेख ने यह भी आलोचना की कि बागी एनसीपी नेताओं को प्रमुख पद देने से भाजपा के अपने कार्यकर्ताओं में असंतोष पैदा हुआ।