तेलुगू सिनेमा ने हमेशा भारतीय फिल्म दर्शकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। साई राम आदित्य द्वारा निर्देशित और विश्वा प्रसाद द्वारा निर्मित 'मनमे' ने भी इसी श्रेणी में अपनी छाप छोड़ने की कोशिश की है। इस फिल्म का आधार हॉलीवुड फिल्म 'लाइफ एज वी नो इट' पर है, और इसमें शरवानंद, कृति शेट्टी, विक्रम आदित्य, तृगुण, सीरत कपूर, आयशा खान, वेंनेला किशोर, राहुल रविंद्रन, राहुल रामकृष्ण, शिव कांदुकुरी, सुदर्शन, सचिन खेड़कर, तुलसी, सीता, और मुकेश ऋषि जैसे कलाकार मुख्य भूमिकाओं में नजर आते हैं।
फिल्म की कहानी विक्रम और सुभद्रा के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अनाथ बच्चे खुशी की देखभाल करते हैं। खुशी के माता-पिता, अनुराग और शांति के आकस्मिक निधन के बाद, ये दोनों अपने नए दायित्वों को निभाते हुए एक-दूसरे के प्रति भावनाओं का विकास करते हैं। जहां फिल्म की शुरुआत कुछ हद तक दिलचस्प लगती है, वहीं 20 मिनट बाद यह कहानी बोरिंग और पूर्वानुमानित प्रतीत होती है।
विक्रम और सुभद्रा के चरित्र और उनके प्रदर्शन में वो गहराई नहीं दिखाई देती जो दर्शकों को उनसे जोड़ सके। उनके अभिनय में एक जिम्मेदाराना भाव की कमी महसूस होती है, जो कि मुख्य पात्रों के लिए आवश्यक है। इसके अलावा, नकारात्मक किरदार भी पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते जिससे फिल्म में एक सस्पेंस और रोमांच की कमी बनी रहती है।
साई राम आदित्य का निर्देशन काफी हद तक औसत नजर आता है। फिल्म की लेयरिंग और चालाकी से कुछ भी खास नया पेश नहीं किया गया है। हेशाम अब्दुल वाहब का संगीत भी फिल्म के अनुरूप नहीं बैठता और कहीं न कहीं यह भी फिल्म की कहानी के साथ न्याय नहीं कर पाता।
शरवानंद और कृति शेट्टी के प्रदर्शन की बात करें तो उनका अभिनय स्वयं वास्तविक नहीं लगता। अन्य सहायक कलाकार भी अपने किरदारों में कोई खास प्रभाव नहीं डालते। फिल्म के पटकथा लेखक को भी ध्यान देना चाहिए था कि चरित्र विकास और संवाद मामले में थोड़ा अधिक संवेदनशीलता बरतें।
सबसे बड़ी कमी यह है कि फिल्म भावनात्मक गहराई में पूरी तरह असफल रही है। कहानी में ऐसा कोई तत्व नहीं है जो दर्शकों को अंत तक अपनी सीट से बांधे रखे। फिल्म की पटकथा भी बहुत सरल और पूर्वानुमानित है, जिससे दर्शकों में एक नीरसता उत्पन्न होती है।
फिल्म में इस बात की भी कमी है कि यह दर्शकों के साथ एक भावनात्मक संबंध बनाने में सक्षम नहीं है। कहानी का पैटर्न भी कुछ उसी पुराने ढर्रे पर है, जिसे बार-बार देखा जा चुका है।
समग्र रूप से 'मनमे' एक ऐसी फिल्म है जो अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में असफल रही है। यह एक रीमेक होते हुए भी अपनी मौलिकता खो चुकी है और भावनात्मक रूप से दर्शकों को स्वयं में जुड़ने का मौका नहीं दे पाती। यदि आप ऐसी कहानी की तलाश में हैं जो आपको हिला दे और एक रोमांचक अनुभव प्रदान करे, तो यह फिल्म शायद वह नहीं है।
एक टिप्पणी लिखें