आरएसएस के मुखपत्र 'ऑर्गनाइज़र' में प्रकाशित लेख ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा अजित पवार-नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ किए गए गठबंधन को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। इस लेख में बताया गया है कि महाराष्ट्र में काफी समय से एनसीपी के खिलाफ लड़ रही भाजपा ने जब एनसीपी के साथ गठबंधन किया, तब इसका नकारात्मक असर लोकसभा चुनावों में पड़ा। लेख में यह भी उल्लेख किया गया है कि पार्टी के अपने स्थानीय नेताओं को उपेक्षित करके अन्य दलों से आए नेताओं को शामिल करना भाजपा के लिए एक गलत निर्णय साबित हुआ।
आरएसएस के इस विशेष लेख ने भाजपा को यह चेतावनी भी दी है कि उनके इस कदम से पार्टी की साख को गंभीर नुकसान पहुंचा है। वर्षों तक एनसीपी के खिलाफ संघर्ष करने वाले भाजपा के पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं के मनोबल को इस गठबंधन से भारी चोट पहुंची है। पार्टी ने एनसीपी से आए नेताओं को प्रमुख पद भी दे दिए, जिससे पार्टी के अपने कार्यकर्ताओं में भारी असंतोष फैल गया। इसे जनता ने भी नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा, जिसका सीधा असर पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ा।
आरएसएस के इस लेख पर एनसीपी नेता छगन भुजबल ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि एनसीपी को महाराष्ट्र के 48 लोकसभा सीटों में से केवल 4 सीटें ही मिली थीं। इसके अलावा, पार्टी ने वास्तव में केवल दो सीटों पर ही प्रभावी रूप से चुनाव लड़ा और उनमें से एक जीती। भुजबल का कहना है कि एनसीपी के खराब प्रदर्शन के कारण ही भाजपा का प्रदर्शन भी धूमिल हो गया। हालांकि, यह तर्क निश्चित रूप से पूरे परिदृश्य की व्याख्या नहीं करता, लेकिन यह अपनी जिम्मेदारी को कम करने की कोशिश जरूर करता दिखाई देता है।
भाजपा और एनसीपी के इस गठबंधन ने दिखा दिया है कि कैसे राजनीतिक गठबंधन कभी-कभी अपने ही कार्यकर्ताओं और जनता के बीच में भ्रम पैदा कर सकते हैं। भाजपा ने एनसीपी के साथ गठबंधन करके अपने पुराने संघर्षों को अनदेखा किया और इसका प्रतिकूल परिणाम भी भुगता। यह एक सीख है कि किसी भी राजनीतिक दल को अपने मूल्य और आदर्शों को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए। केवल अधिक सीटें जीतने की कोशिश में अपने ही कार्यकर्ताओं की भावना को आहत करना पार्टी के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
यह लेख न केवल भाजपा के वर्तमान बल्कि भविष्य के लिए भी एक चेतावनी है। आरएसएस का यह खुलासा दर्शाता है कि पार्टी को अपने पुराने संघर्षों और स्थानीय नेताओं को महत्व देना चाहिए। एनसीपी के साथ इस तरह के गठबंधन से पार्टी की पहचान और उसकी नीतियों पर सवाल उठ सकते हैं, क्यूंकि इससे कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मोहभंग हो सकता है। पार्टी के नेतृत्व को चाहिए कि वे इस स्थिति से सबक लें और भविष्य में अपने कार्यकर्ताओं की भावना और पार्टी की साख को ध्यान में रखते हुए निर्णय लें।
महाराष्ट्र की राजनीति में यह नया मोड़ दिखाता है कि कैसे त्वरित राजनीतिक फायदे के लिए किए गए निर्णय लंबे समय में हानिकारक साबित हो सकते हैं। भाजपा को अपनी पुरानी परंपराओं और संघर्षों को नजरअंदाज करने के बजाय उन्हें सहेजकर रखना चाहिए। इसके अलावा, पार्टी के नेतृत्व को यह भी समझना चाहिए कि जनता को भी उनके फैसलों का विस्तृत आकलन करना आता है और वे सच्चाई को समझ सकती है।
एक टिप्पणी लिखें