क्या आपका नेविगेशन कभी गुमराह कर गया? GNSS (Global Navigation Satellite System) उन सैटेलाइट्स का समूह है जो आपकी डिवाइस को लोकेशन और समय बताने में मदद करता है। स्मार्टफोन, कार नेविगेशन, सर्वेयर, खेती के स्मार्ट ट्रैक्टर—सब GNSS पर निर्भर करते हैं। सही जानकारी होने पर रास्ता, मैपिंग और टाइमिंग बिल्कुल बदल जाती है।
कई GNSS नेटवर्क हैं—सबसे मशहूर हैं अमेरिकी GPS, रूस का GLONASS, यूरोपीय Galileo, चीन का BeiDou और भारत का NavIC (IRNSS)। NavIC खासकर स्थानीय क्षेत्र (India और आसपास) में सटीकता बढ़ाता है। इसके अलावा GAGAN जैसे SBAS (Satellite Based Augmentation Systems) सुधरी हुई स्थितियों के लिए रियल‑टाइम सुधार भेजते हैं। छोटे से लेकर बड़े उपयोगों तक हर सिस्टम की अपनी ताकत होती है।
उदाहरण: अगर आप खेती में प्रिसाइज़ प्लॉटिंग करते हैं तो RTK (Real Time Kinematic) या DGPS çöशक काफी उपयोगी होते हैं। वहीं रोज़मर्रा के स्मार्टफोन नेविगेशन में GPS+GLONASS+NavIC मिलकर बेहतर कवरेज देते हैं।
सिर्फ सिस्टम जानना काफी नहीं—थोड़े व्यवहारिक बदलाव बड़ी सटीकता दे सकते हैं। सबसे पहले कोशिश करें कि डिवाइस का आसमान की तरफ स्पष्ट व्यू हो: ऊँची इमारतों, पेड़ों और अंदरूनी हिस्सों से सिग्नल प्रभावित होते हैं।
कुछ आसान सुझाव:
एक और जरूरी बात: मौसम, आयोनॉस्फियर और सैटेलाइट ज्योमेट्री (PDOP) सटीकता पर असर डालते हैं। अगर वैरिएशन दिखें तो रियल‑टाइम करेक्शन या बाद के प्रोसेसिंग से रिजल्ट सुधारें।
क्या आप नया GNSS‑आधारित प्रोजेक्ट शुरू करना चाहते हैं? छोटे से शुरुआत करें—एक स्मार्टफोन डेटा लें, फिर अलग-अलग मॉड्स (RTK, SBAS) का फर्क देखें। इससे आपको लागत और लाभ का सही अंदाजा मिलेगा।
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भारतीय सरकार ने देश में पारंपरिक टोल बूथों की जगह सैटेलाइट-आधारित टोल वसूली प्रणाली लाने की योजना बनाई है। इस नई प्रणाली को लागू करने की घोषणा केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने की। इस योजना के तहत वाहनों की यात्रा दूरी के अनुसार टोल राशि स्वचालित रूप से बैंक खाते से कट जाएगी। यह प्रणाली मौजूदा FASTag प्रणाली के साथ काम करेगी और टोल प्रणाली को सुधारने की दिशा में अहम कदम साबित होगी।