Bharat Bandh: संवैधानिक हकीकत और कानूनी सवाल
Bharat Bandh—यह शब्द सुनते ही दिमाग में बंद बाजार, सड़कों पर सन्नाटा, और जगह-जगह प्रदर्शन की छवियां उभर आती हैं। आमतौर पर राजनीतिक पार्टियां या सामाजिक संगठन जब सरकार की किसी नीति या फैसले का विरोध करना चाहते हैं, तो भारत बंद का रास्ता अपनाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि 'भारत बंद' कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है? और अगर किसी को इसकी वजह से नुकसान हुआ, तो मामला सीधे अदालत तक जा सकता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के मुताबिक हर नागरिक को 'शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र होने' और 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का अधिकार है। पर सुप्रीम कोर्ट ने कई बार साफ कहा है कि धरना-प्रदर्शन का मतलब पूरे देश या किसी राज्य/शहर को ठप कर देना नहीं हो सकता। 1998 के ऐतिहासिक फैसले में अदालत ने Bharat Bandh को 'असंवैधानिक' ठहराया, खासकर जब यह आम जनजीवन, यातायात या कारोबार को रोकता है।
2004 में, अदालत ने बीजेपी और शिवसेना पर जुर्माना भी लगाया था। वजह थी मुंबई में बम धमाकों के बाद जबरन बंद कराने की कोशिश। सुप्रीम कोर्ट का साफ संदेश था—लोकतंत्र में विरोध होना चाहिए, पर वह शांति और कानून के दायरे में रहकर ही संभव है। जबरन दुकानें बंद कराना, यातायात जाम करना या आगजनी जैसी हिंसा सख्त गैरकानूनी मानी जाती है।
‘क्रीमी लेयर’ विवाद और ताजा Bharat Bandh
21 अगस्त 2024 का भारत बंद नई बहसें लेकर आया। 'आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति' के बैनर तले 21 संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के SC/ST आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' लागू करने के फैसले का विरोध किया। उनका आरोप था कि इससे समाज के वंचित वर्गों के अधिकार प्रभावित होंगे। इस बार ज़्यादातर जगह विरोध शांतिपूर्ण रहा, लेकिन प्रशासन और कानून व्यवस्था सतर्क ही रही। बंद के नाम पर जबरन दुकानें बंद कराने, सड़कों पर ट्रैफिक रोकने जैसी घटनाएं नहीं हुईं, फिर भी आयोजकों पर सवाल उठे—कहीं किसी का हक तो नहीं छीना गया?
कानूनी जानकार मानते हैं कि भारतीय कानून किसी को शांतिपूर्ण विरोध का मौका देता है, लेकिन जैसे ही बंद के नाम पर हिंसा, तोड़फोड़ या जबरन किसी को घर या दुकान बंद करने का दबाव बनाया जाता है, कानून का शिकंजा कस जाता है। पुलिस को ऐसे मामलों में धारा 144 से लेकर सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकने के सभी अधिकार मिल जाते हैं।
आज के दौर में सोशल मीडिया ने विरोध को आसान बना दिया है, लेकिन इससे जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। अब छोटी सी घटना पलभर में पूरे देश तक पहुंच जाती है। ऐसे में हर बार यह सवाल जोर से उठता है—क्या सही में विरोध हो रहा है, या इसके नाम पर आम जनता की आज़ादी और सुरक्षा को खतरा में डाला जा रहा है?