ओवैसी के 'जय पलेस्तीन' टिप्पणी से शपथ ग्रहण समारोह में मची खलबली

ओवैसी के 'जय पलेस्तीन' टिप्पणी से शपथ ग्रहण समारोह में मची खलबली

शपथ ग्रहण समारोह में असदुद्दीन ओवैसी के 'जय पलेस्तीन' टिप्पणी से विवाद

नई दिल्ली: AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को तब विवाद उत्पन्न कर दिया जब उन्होंने 18वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में शपथ लेते समय 'जय पलेस्तीन' कहा। यह घटना तब घटी जब ओवैसी ने उर्दू में शपथ ली और इसके साथ ही उन्होंने तेलंगाना, भीमराव अंबेडकर और AIMIM के मुस्लिम समर्थकों का भी उल्लेख किया।

ओवैसी के 'जय पलेस्तीन' टिप्पणी से सदन में हंगामा मच गया। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि जैसे ही उन्होंने पलेस्तीन का जिक्र किया, कई सदस्य विरोध में खड़े हो गए और जोरदार आपत्ति जताई। इस पर चेयर ने ओवैसी की टिप्पणी को सदन के रिकॉर्ड से हटाने का आदेश दिया।

ओवैसी का तर्क और उनका स्पष्टीकरण

ओवैसी ने अपनी टिप्पणी को सही ठहराते हुए कहा कि उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों का हवाला देते हुए पलेस्तीन का समर्थन किया है और यह उनकी 'पीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति' को दर्शाता है। ओवैसी ने कहा, 'महात्मा गांधी ने भी पलेस्तीन के बारे में इसी तरह के विचार व्यक्त किए थे। यह टिप्पणी किसी भी राष्ट्रवाद या देशद्रोह को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नहीं की गई थी।'

उनकी इस टिप्पणी ने सिर्फ सदन के बाहर ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर भी व्यापक चर्चा को जन्म दिया। कई लोग उनके समर्थन में आ गए, तो कई ने उनकी कड़ी आलोचना की।

सरकार और विपक्ष की प्रतिक्रिया

इस मुद्दे पर संसद सदस्य और विपक्षी नेता विभाजित नज़र आए। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें इस प्रकार की शिकायतें मिली हैं और वह नियमों की जांच करेंगे कि क्या इस प्रकार की टिप्पणियों की अनुमति है या नहीं। रिजिजू ने यह भी कहा कि संसद में किए गए हर बयान की जांच होगी और निष्पक्षता से निर्णय लिया जाएगा।

वहीं, केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी और भाजपा नेता अमित मालवीय ने ओवैसी की टिप्पणी की कड़ी निंदा की। मालवीय ने तो यहां तक कह दिया कि ओवैसी को एक विदेशी राज्य के प्रति वफादारी दिखाने के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है। रेड्डी ने कहा कि 'यह एक संवेदनशील मुद्दा है और ओवैसी को इस तरह की टिप्पणियों से बचना चाहिए।'

पलेस्तीन मुद्दे पर महात्मा गांधी का दृष्टिकोण

पलेस्तीन मुद्दे पर महात्मा गांधी का दृष्टिकोण

महात्मा गांधी ने पलेस्तीन में यहूदियों के बसने का विरोध किया था और उन्होंने इसे नैतिक और न्यायिक दृष्टिकोण से अनुचित ठहराया था। उनके विचार आज भी कई लोग समर्थन करते हैं, जहां वे मानते हैं कि यह मुद्दा अब भी जीवंत है। ओवैसी ने इन्हीं विचारों को आगे बढ़ाने की कोशिश की।

ओवैसी के बयान का ऐतिहासिक संदर्भ

इस बयान के पीछे ओवैसी का एजेंडा सिर्फ एक राजनीतिक बयान देने का नहीं था, बल्कि उन्होंने महात्मा गांधी की उस विचारधारा को दोहराया जिसमें मानवाधिकारों और न्याय का समर्थन किया गया है। गांधी ने कहा था कि पलेस्तीन पर यहूदियों का अधिकार नहीं है और वहां पर अरब निवासियों का पहले से ही अधिकार है।

आम जनता की प्रतिक्रिया

आम जनता की प्रतिक्रिया

सामाजिक मीडिया और समाचार चैनलों पर इस मुद्दे ने एक बड़ी चर्चा को जन्म दिया है। जहां कई लोग ओवैसी के बयान का समर्थन करते हुए कह रहे हैं कि यह उनके मानवाधिकारों के समर्थन का प्रतीक है, वही कुछ लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं और इसे राष्ट्रवाद विरोधी बता रहे हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार संगठन भी इस मामले में विभाजित नज़र आ रहे हैं। कुछ का मानना है कि ओवैसी का वक्तव्य एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर एक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जबकि अन्य इसे घरेलू राजनीति के लिए अनुचित मानते हैं।

ओवैसी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में ओवैसी पर किसी प्रकार की अनुशासनात्मक कार्रवाई होती है या नहीं। इससे संबंधित नियमों की जांच की जा रही है और यह देखना होगा कि सदन इस पर आगे क्या निर्णय लेता है।

इस प्रकार, असदुद्दीन ओवैसी के 'जय पलेस्तीन' टिप्पणी ने न केवल राजनीतिक क्षेत्र में खलबली मचाई है, बल्कि आम जनता में भी एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दिया है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले दिनों में इस विवाद का क्या परिणाम निकलता है।

5 टिप्पणि

  • Sanjay Kumar

    Sanjay Kumar

    जून 26, 2024 AT 21:03

    ओवैसी ने शपथ लेते समय जो कहा, उससे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को भारत में लाने की कोशिश स्पष्ट है 😊। सभी को संवाद के माध्यम से समझ बनाने की जरूरत है।

  • adarsh pandey

    adarsh pandey

    जून 27, 2024 AT 04:00

    ओवैसी की टिप्पणी ने संसद में संवेदनशीलता की परीक्षा ली है, और यह देखना जरूरी है कि ऐसी अभिव्यक्तियों को किस हद तक स्वीकार किया जा सकता है। नियमों का पालन अनिवार्य है, लेकिन व्यक्तियों की भावनात्मक अभिव्यक्ति को भी सम्मान देना चाहिए।

  • swapnil chamoli

    swapnil chamoli

    जून 27, 2024 AT 17:53

    बहुत लोग इस घटना को भारतीय राजनयिक मोड़ों के पीछे की बड़ी साजिश समझते हैं, जहाँ विदेशी एजेंसियाँ लोकतंत्र को झकझोरने की कोशिश कर रही हैं। ओवैसी का बयान शायद किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा हो सकता है, जिससे राष्ट्रीय एकता को खतरा हो रहा है।

  • manish prajapati

    manish prajapati

    जून 28, 2024 AT 21:40

    ओवैसी का "जय पलेस्तीन" कहना वास्तव में एक जटिल सामाजिक-राजनीतिक सन्दर्भ को छूता है।
    भारत में कई लोग इसे मानवाधिकारों के समर्थन के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य इसे राष्ट्रीय अभिव्यक्ति की सीमा पार मानते हैं।
    इतिहास में गांधी जी ने भी पलेस्तीन के सवाल पर अपने विचार रखे थे, जिसमें उन्होंने न्याय और समानता की बात की थी।
    आज के समय में जब दुनिया में कई मौजूदा संघर्ष चल रहे हैं, ऐसे बयानों को समझने के लिए व्यापक परिप्रेक्ष्य चाहिए।
    संसद में एक सदस्य की व्यक्तिगत भावना को सार्वजनिक मंच पर व्यक्त करना अचानक विवाद का मूल बन जाता है।
    यह तथ्य कि टिप्पणी को रिकॉर्ड से हटाने का आदेश आया, यह दर्शाता है कि संस्थागत प्रक्रिया मौजूदा शब्दों को कैसे संभालती है।
    कई युवा वर्ग इस मुद्दे पर चर्चा को एक मंच मानते हैं जहाँ विभिन्न विचारों को मिलजुल कर समझा जा सके।
    वहीं, कुछ राजनीतिक वर्ग इसे राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा मानते हुए कड़ी निंदा करते हैं।
    इस विभाजन में मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह समाचार को कैसे प्रस्तुत करता है, वह सार्वजनिक राय को आकार देता है।
    सोशल मीडिया पर इस विषय पर प्रमुख हैशटैग और मिथक फैलते हैं, जो अक्सर वास्तविक तथ्यों से भटके होते हैं।
    लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पलेस्तीन की समस्या एक जटिल मानवीय संकट है, और उसके समाधान के लिए बहुपक्षीय प्रयास आवश्यक हैं।
    ओवैसी के इस बयान को सिर्फ राजनीतिक हवा में ले जाने की बजाय, एक गहरी सामाजिक जागरूकता के रूप में देखा जा सकता है।
    इस तरह के बयानों से कभी-कभी राष्ट्रीय नीति पर नई सोच उभरती है, जिससे लोकतंत्र को मजबूती मिलती है।
    हालांकि, यदि संवाद नहीं होता और केवल विरोधी रुख अपनाया जाता है, तो सामाजिक विभाजन बढ़ता है।
    इस कारण से, हमें सभी पक्षों को सुनने, समझने और फिर मिलकर एक सतत समाधान की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।

  • Rohit Garg

    Rohit Garg

    जून 30, 2024 AT 01:26

    ओवैसी की टिप्पणी तो पूरी तरह से फुरसत में निकली बात है! 🌶️

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