अग्निकुल कॉसमोस के रॉकेट की पहली सफल लॉन्च : संस्थापक चक्रवर्ती की खुशी

अग्निकुल कॉसमोस के रॉकेट की पहली सफल लॉन्च : संस्थापक चक्रवर्ती की खुशी

अग्निकुल कॉसमोस के सह-संस्थापक की खुशी

अगले चरण में सत्या नारायण चक्रवर्ती ने अपने साक्षात्कार में यह स्वीकार किया कि अग्निबाण SOrTeD रॉकेट की पहली लॉन्चिंग के दौरान असंख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जब यह खबर आई कि अग्निकुल कॉसमोस, चेन्नई स्थित इस स्टार्टअप का पहला रॉकेट सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित हुआ है, तो चक्रवर्ती की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने कहा, “किसी भी पहले लॉन्च वाहन को इतनी कठिनाई नहीं झेलनी पड़ी है, जितनी अग्निबाण SOrTeD को।”

यह रॉकेट IIT मद्रास अनुसंधान पार्क में स्थित इसकी सुविधाओं से श्रीहरिकोटा के प्राइवेट लॉन्च पैड तक कई बार यात्रा कर चुका है। इस दौरान इसे समुद्री हवा और पानी के छींटों का सामना करना पड़ा, जिससे रॉकेट के विभिन्न घटकों को नुकसान पहुंचने की संभावना बनी रही। समुद्री पर्यावरण में धातुओं का तेजी से क्षरण होता है और विद्युत सम्बन्धी अवरोध उत्पन्न होते हैं। अमूमन रॉकेट्स को बाहरी परत से सुरक्षित किया जाता है ताकि वे मौसम के अत्याचारों से सुरक्षित रहें, लेकिन पहली बार के लॉन्च में इनमें से कई सुरक्षात्मक उपाय नहीं किए जा सकते।

अनगिनत झंझावात और सफलताएँ

अनगिनत झंझावात और सफलताएँ

अग्निकुल कॉसमोस को 2016 में IIT मद्रास अनुसंधान पार्क में अशोक झुनझुनवाला के मार्गदर्शन में स्थापित किया गया था। सत्यनारायण चक्रवर्ती, एक सीरियल आंत्रप्रेन्योर, पहले से ही ePlane, GalaxEye, Aerostrovilos Energy, TuTr Hyperloop और X2Fuels जैसी पांच डीप टेक स्टार्टअप्स के सह-संस्थापक रहे हैं। अग्निकुल के साथ उनकी यात्रा एक उल्लेखनीय सफलता की कहानी है।

अग्निबाण SOrTeD की उपलब्धि विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें भारत के पहले सेमी-क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया है। यह इंजन प्रोपलेंट के लिए लिक्विड और गैस के संयोजन का उपयोग करता है। रॉकेट की सफलता न केवल तकनीक बल्कि गुणवत्तापूर्ण निर्माण और उत्कृष्ट टीमवर्क का प्रमाण है।

इस सफर में मिली चुनौतियाँ

रॉकेट को समुद्र के किनारे स्थित लॉन्चपैड तक ले जाते समय उसे कई बार गाड़ी में लादकर ले जाना पड़ा। इस प्रक्रिया में समुद्री हवा और पानी के कारण रॉकेट के कई हिस्सों को क्षति पहुँचने का खतरा था। समुद्री लहरों के प्रभाव से नमी और खारी हवा की वजह से धातु का क्षरण और विद्युत तंत्र में गड़बड़ी की संभावना बढ़ जाती है। लाखों रुपये की लागत से तैयार किए गए इस रॉकेट को ऐसी परिस्थिति से सुरक्षित रखना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।

इसके बावजूद, सत्यनारायण चक्रवर्ती और उनकी टीम ने सभी बाधाओं का सफलतापूर्वक सामना किया और आज वह अंतरिक्ष के सफर पर अपने पहले कदम रखने में काभी सफल हुए हैं। यह न केवल टीम के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक गर्व का क्षण है।

भारत की अंतरिक्ष विज्ञान में बढ़ती कदम

भारत में अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इस उपलब्धि से यह प्रमाणित होता है कि भारतीय स्टार्टअप्स भी अब बड़े-बड़े रॉकेट्स के निर्माण और प्रक्षेपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अग्निकुल कॉसमोस का यह पहला कदम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में एक नई क्रांति लेकर आया है।

अक्सर भारतीय स्टार्टअप्स के सामने वित्तीय और तकनीकी चुनौतियाँ बड़ी बाधा बनती हैं। लेकिन अग्निकुल ने इस मिथक को तोड़ा है और दिखा दिया है कि दृढ़ संकल्प और उच्चतम गुणवत्ता के साथ कुछ भी संभव है।

अग्निकुल की व्यावसायिक दृष्टि

अग्निकुल की व्यावसायिक दृष्टि

आगे चलते हुए, अग्निकुल का लक्ष्य है कि वह सस्ते और किफायती लॉन्च विकल्प उपलब्ध कराएँ, ताकि छोटे और मध्यम आकार के सैटेलाइट्स आसानी से अंतरिक्ष में भेजे जा सकें। कंपनी का यह सपना है कि वह भारत को अंतरिक्ष प्रक्षेपण के क्षेत्र में सफलता दिलाने के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण योगदान दे सके।

सत्यनारायण चक्रवर्ती की नेतृत्व और उनके टीम के समर्पण ने अग्निकुल को इस मुकाम तक पहुँचाया है। आने वाले समय में हम उनसे और भी बड़ी सफलताओं की उम्मीद कर सकते हैं। भारतीय अंतरिक्ष यात्रा का भविष्य अग्निकुल जैसे सफलताओं से सजे सितारों से रोशन दिख रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अग्निकुल कॉसमोस की यह यात्रा अब नए आयाम लेकर आएगी और भारतीय स्टार्टअप्स को उच्चतम शिखर पर पहुँचाएगी।

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